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त्वं च॑ सोम नो॒ वशो॑ जी॒वातुं॒ न म॑रामहे। प्रि॒यस्तो॑त्रो॒ वन॒स्पति॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ ca soma no vaśo jīvātuṁ na marāmahe | priyastotro vanaspatiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। च॒। सो॒म॒। नः॒। वशः॑। जी॒वातु॑म्। न। म॒रा॒म॒हे॒। प्रि॒यऽस्तो॑त्रः। वन॒स्पतिः॑ ॥ १.९१.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:91» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) श्रेष्ठ कामों में प्रेरणा देनेहारे परमेश्वर ! वा श्रेष्ठ कामों में प्रेरणा देता जो (त्वम्) सो यह (च) और आप (नः) हमलोगों के (जीवातुम्) जीवन को (वशः) वश होने के गुणों का प्रकाश करने वा (प्रियस्तोत्रः) जिनके गुणों का कथन प्रेम करने-करानेवाला है वा (वनस्पतिः) सेवनीय पदार्थों की पालना करनेहारे वा यह सोम जङ्गली ओषधियों में अत्यन्त श्रेष्ठ है, इस व्यवस्था से इन दोनों को जानकर हम लोग शीघ्र (न) (मरामहे) अकाल मृत्यु और अनायास मृत्यु न पावें ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो मनुष्य ईश्वर की आज्ञा पालनेहारे विद्वानों और ओषधियों का सेवन करते हैं, वे पूरी आयु पाते हैं ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे सोम यतस्त्वमयं च नोऽस्माकं जीवातुं वशः प्रियस्तोत्रो वनस्पतिर्भवसि भवति वा तदेतद् द्वयं विज्ञाय वयं सद्यो न मरामहे ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (च) समुच्चये (सोम) सत्कर्मसु प्रेरक प्रेरको वा (नः) अस्माकम् (वशः) वशित्वगुणप्रापकः (जीवातुम्) जीवनम् (न) निषेधार्थे (मरामहे) अकालमृत्युं क्षणभङ्गदेहे प्राप्नुयाम। अत्र विकरणव्यत्ययः। (प्रियस्तोत्रः) प्रियं प्रति प्रियकारि स्तोत्रं गुणस्तवनं यस्य सः (वनस्पतिः) संभक्तस्य पदार्थसमूहस्य जङ्गलस्य वा पालकः श्रेष्ठतमो वा ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। ये मनुष्या ईश्वराज्ञापालिनो विदुषामोषधीनां च सेविनः सन्ति ते पूर्णमायुः प्राप्नुवन्ति ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जी माणसे ईश्वराची आज्ञा पालन करणाऱ्या विद्वानांचे व औषधांचे सेवन करतात ती पूर्ण आयुष्य भोगतात. ॥ ६ ॥